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ग़ज़ल (यार पुराने छूट गए तो छूट गए)

Jatinder Parwaaz
Jatinder Parwaaz
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यार पुराने छूट गए तो छूट गए
काँच के बर्तन टूट गए तो टूट गए

सोच-समझ कर होंठ हिलाने पड़ते हैं
तीर कमाँ से छूट गए तो छूट गए

शहज़ादे के खेल-खिलौने थोड़ी थे
मेरे सपने टूट गए तो टूट गए

इस बस्ती में कौन किसी का दुख रोए
भाग किसी के फूट गए तो फूट गए

छोड़ो रोना-धोना रिश्ते नातों पर
कच्चे धागे टूट गए तो टूट गए

अब के बिछड़े तो मर जाएंगे ‘परवाज़’
हाथ अगर अब छूट गए तो छूट गए

… जतिंदर परवाज़ 9914405111

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