Jatinder Parwaaz
- 7 Posts
- 1 Comment
शजर पर एक ही पत्ता बचा है
हवा की आँख में चुभने लगा है
नदी दम तोड़ बैठी तशनगी से
समन्दर बारिशों में भीगता है
कभी जुगनू कभी तितली के पीछे
मेरा बचपन अभी तक भागता है
सभी के ख़ून में ग़ैरत नहीं पर
लहू सब की रगों में दौड़ता है
जवानी क्या मेरे बेटे पे आई
मेरी आँखों में आँखें डालता है
चलो हम भी किनारे बैठ जायें
ग़ज़ल ग़ालिब-सी दरिया गा रहा है
… जतिंदर परवाज़ 9914405111
Read Comments