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(ग़ज़ल) ख़्वाब देखे थे घर में क्या-क्या कुछ

Jatinder Parwaaz
Jatinder Parwaaz
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ख़्वाब देखे थे घर में क्या-क्या कुछ
मुश्क़िलें हैं सफ़र में क्या-क्या कुछ
फूल से जिस्म चांद से चेहरे
तैरता है नज़र में क्या-क्या कुछ
तेरी यादें भी, अहल-ए-दुनिया भी
हम ने रक्खा है सर में क्या-क्या कुछ
ढूंढते हैं तो कुछ नहीं मिलता
था हमारे भी घर में क्या-क्या कुछ
शाम तक तो नगर सलामत था
हो गया रात भर में क्या-क्या कुछ
हम से पूछो न ज़िंदगी ‘परवाज़’
थी हमारी नज़र में क्या-क्या कुछ
… जतिंदर परवाज़ 9914405111

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